Monday, February 13, 2017

पावन संकल्पों से संकल्पित होकर- सोनरूपा विशाल


 

पावन संकल्पों से संकल्पित होकर- सोनरूपा विशाल 



लेखिका सोनरूपा विशाल से जब भी किसी ख़ास अवसर पर लिखने के लिए कहतीं हूँ वे हमेशा मेरी उम्मीदों पर खरी उतरतीं हैं! विवाह उपरांत भी कैसे उनके सहचर के प्रेम में कोई बदलाव नहीं आया .. उनकी रुचियों को कैसे अपने प्रेम से सींचा .. उसे बहुत खूबसूरती से इस संस्मरण के माध्यम से साझा किया है..



!!संस्मरण!!

मैं जब हँसती हूँ
तुम कहते हो
आह.. चाँदनी सी बिखर गई है!
मेरी अँगड़ाई
तुम्हारे लिए
नदिया की बलखाती लहर है!
मेरा श्रृंगार जैसे बसंत!
मेरी ख़ुशबू हरसिंगार का बगीचा!
लटें बादल!
आँखें डल झील के सजीले शिकारे!
उँगलियाँ मुरलियाँ!
बाँहें गगन!
साँसे पवन!
चाल हिरनी सी!
मेरी नींद जैसे साँझ!
मेरा आँचल जैसे सागर!
प्रेम में तुम मुझमें सृष्टि रच रहे होते हो!
और
ये तुम्हारे प्रेम की शिद्दत है
जिस कारन मुझे ख़ुद में वो सब नज़र आता है
जो तुम्हें मुझमें नज़र आता है !
मैं मुस्कुराती हूँ कभी
कभी बन्द कर लेती हूँ आँखें
कभी एक टक तुम्हें देखती हूँ!
फिर अचानक
तुम्हें अपनी बाहों में गह कर
कहती हूँ कि
जो रची है तुमने
वो सृष्टि अब तुम्हारी हुई!

!!मेरे इन हाथों में तुम गर अपना हाथ नहीं देते,मुझमें कितना प्यार है मैं इससे अनजानी रह जाती!!
ये फरवरी के गुलाबी मौसम की दोपहर थी,तारीख़ 13, जो अब हमें हमारी एंगेजमेंट की तारीख़ के रूप में ज़्यादा याद रहती है ! इस रस्म में हम दोनों के सिर्फ परिवारीजन ही शामिल हुए थे !
उसी शाम जब पापा  रोज़ की तरह क्लब जाने के लिए घर से बाहर निकले, उन्हें सामने एक व्यक्ति और उसके हाथ में बड़ा सा पैकेट जिसे बरेली से कुरियर किया गया था..दिखाई दिया !  ' ये क्या है' पापा ने पैकेट उलट पलटकर  फिर  कुरियर रिसीव किया और उसे अंदर आकर खोलने लगे !  मैं समझ गयी थी कि ये ज़रूर विशाल ने भेजा है !  अगले दिन वैलेंटाइन डे भी था !  मुझे घबराहट हो रही थी कि न जाने पापा क्या कहेंगे!   मैं बहुत झिझक और डर रही थी!   इससे पहले भी विशाल मेरे जन्मदिन पर अचानक रात में आकर मम्मी के हाथ में केक दे कर चलते बने थे और मम्मी अवाक रह गयी थीं !
लेकिन कुरियर देख कर पापा ने कुछ नहीं कहा बस उसको थोड़ा सा ही खोल कर छोड़ दिया!  जिसे हम सब ने बाद में खोला उस पैकेट में बड़ा सा टेडी बेयर, चॉकलेट्स,ग्रीटिंग और रोमेंटिक मेसेज के साथ एक ख़ूबसूरत सी फोटो थी!
उस वक़्त मोबाइल के यूज़र्स कम ही लोग थे !  विशाल के पास मोबाइल था लेकिन मेरे पास नहीं और लेंड लाइन फोन भी घर के बीचों बीच लगा था नहीं तो  विशाल से बोलती कि 'क्या ज़रूरत थी ये सब भेजने की !  वो तो अच्छा हुआ कि आज एंगेजमेंट हो गयी तब आया ये कुरियर, नहीं तो न जाने मम्मी पापा कितना नाराज़ होते!'
ख़ैर एंगेजमेंट और शादी में कुछ ही दिनों का फ़र्क था!  दोनों परिवार शादी की तैयारियों में व्यस्त थे! एक दिन सुबह-सुबह नहा धो कर मैं अपने लंबे बाल सुखाने धूप में बैठी ही थी कि कॉल बेल बजी,देखा तो दो लोग दरवाज़े पर थे !
उस वक़्त जिन्होंने भी उन्हें रिसीव किया उन्होंने आकर बोला कि दो कैमरामेन हैं विशाल जी ने उन्हें भेजा है!  मम्मी ने उन्हें अंदर लेकर आने को कहा! मम्मी के पूछने पर उन्होंने बताया कि उन्हें मेरे कुछ फोटोज़ लेने हैं, मम्मी ने इजाज़त दे दी ! शादी की तैयारियों के दौरान शायद एक दो बार से ज़्यादा विशाल से मेरी बात नहीं हुई थी ,जो मुझे विशाल क्या कर रहे हैं इस तरह का कुछ  पता चलता!  उस दिन मैंने कई तरह की ड्रेसेज़ में फोटोज़ खिंचवाए!
दिन जल्दी-जल्दी बीत रहे थे ! अब शादी कर के मैं ससुराल आ गयी थी!
रस्मों रिवाज़ पूरे करके जैसे ही मैं अपने कमरे में आयी तो सबसे पहले मेरी निगाह दीवार पर लगी मेरी बड़ी सी तस्वीर पर पड़ी ! देखते ही मैंने मन ही मन सोचा 'वाओ मैं और इतनी सुंदर'!  यक़ीन नहीं हुआ उस वक़्त !  काले रंग के शरारे में, काली बिंदी लगाये हुए और खुले बालों में मेरा ये फोटो मुझसे पहले मेरे यहाँ होने का एहसास करवा रहा था!
पूरे कमरे में मेरी पसंद का असर दिखाई दे रहा था !  नये घर में ऐसा ख़ुशनुमा अनुभव मुझे नई जिंदगी के प्रति आशान्वित कर रहा था!
अब एक और नई मुस्कुराहट मेरा इंतज़ार कर रही थी !

कमरे में दो अलमारियों में से एक अब मेरे लिए दे दी गयी थी जिसे खोलते ही मुझे उसमें एक पेपर रखा हुआ मिला जिस पर नीरज जी का लिखा हुआ मेरा बहुत पसंदीदा गीत था !

'फूलों के रंग से दिल की कलम से तुझको लिखी रोज़ पाती,
कैसे बताऊँ किस किस तरह से हर पल मुझे तू सताती
तेरे ही सपने लेकर के सोया
तेरी ही यादों में जागा.....!
मैंने उसे वैसे का वैसा ही रख दिया! इस वक़्त कमरे में मैं अकेली थी तो जम के कमरे का मुआयना कर रही थी! अब मैंने बेड से लगी हुई दराज़ खोली ....अरे यहाँ भी वही गीत लिखा हुआ पर्चा!  म्यूज़िक प्लेयर ऑन किया तो उसमें भी यही गीत बज उठा ! मैं अचरज में थी कि ये क्या माजरा है !  इतने में मेरी ननद आ गईं मैंने उनसे इस बारे में पूछा तो वो ख़ूब हँसने लगीं बोलीं 'जब भैया का हमसफ़र इतना सुरीला है तो उसे इम्प्रेस करने के लिए कुछ तो गाना वाना गाएंगे न!  भाभी ये गाना भैया आपको सुनाने के लिए याद कर रहे थे,शादी की व्यस्तताओं में याद नहीं कर पा रहे थे तो जगह-जगह लिख कर रख लिया और याद करते रहे!
मुझे हँसी आ गयी! वो दिन है और आज का दिन है विशाल से जब भी कोई गाना सुनाने को कहती हूँ तो यही गाना सुनाते हैं और मैं दोबारा उन्हीं पलों को जी लेती हूँ !
ऐसे अनगिन पल हमारे पास हैं जिसने हमारे प्रेम को आकाश सा विस्तार और चाँद तारों सी रौशनी दी है !
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न जाने कितनी ग़ज़लों,गीतों में पिरोया है मैंने अपने प्रेम को !अपनी कैफ़ियत तो बयां करने की फ़न ईश्वर ने मुझे दिया है लेकिन अक्सर जब विशाल को अपने अहसासात कहने के लिए शब्द नहीं मिलते तो मेरे इसी फ़न से वो थोड़ी-थोड़ी जलन महसूस करते हैं ! मैं मुस्कुरा देती हूँ और कहती हूँ
'भले ही न हों तुम्हारे पास शायराना लफ़्ज़, न हों तुम पर प्रेम में पगे हुए शब्दों का ख़ज़ाना लेकिन तुमने एक संवेदनशील,भावुक पत्नी को कभी बिखरने नहीं दिया है तुम मुझे इतना समझते हो कि जब मैं कुछ लिखने की प्रक्रिया में होती हूँ ,तुम बहुत ज़रूरी होने पर भी मेरे ख़्यालात की दुनिया में दस्तक नहीं देते!मेरी हर उपलब्धि जैसे तुम्हारी उपलब्धि है ,ऐसी बहुत सी बारीक बातों से मैंने जाना है ये तुम्हारा समर्पण है मेरे प्रति!
जीवन में आयी हर परिस्तिथि, हर ज़िम्मेदारी निबाहने में तुम मुझे सक्षम पाते हो, ये तुम्हारा विश्वास है मेरे प्रति!
मेरी कई रुचियों की पौध तुम्हारे साथ और समर्थन से लहलहा उठी हैं ! मेरे आकाश,निजता,विस्तार को तुमने सदा सम्मान दिया है! ऐसी कई भागीदारियाँ जतलाती हैं कि ये तुम्हारा आदर है मेरे व्यक्तित्व के प्रति!
मैंने तुम्हें 'तुम' रहने दिया है और तुमने मुझे 'मैं'!हमारी ये समझदारी हमारे 'हम' होने में बहुत अहम है !
समर्पण,विश्वास,आदर,सम्मान जैसे रंगों से मिलकर प्रेम की तस्वीर बनती है!'




मैं एक गीत अपने प्रेम को समर्पित करते हुए संस्मरणों की असीम श्रृंखला के इस अंश को पूर्ण कर रही हूँ!


!! गीत !!

रेशम रेशम ख़्वाब सजाना आया है
प्यार तुम्हारा जब अन्तर में छाया है

दुनियादारी में अब कोई सार नहीं
मन ये बातें सुनने को तैयार नहीं

प्रेम का हर पल सचमुच कितना अद्भुत है
मेरा ही मुझ पर कोई अधिकार नहीं

प्यार है ये कोई या कोई माया है
प्यार तुम्हारा...............................!

पावन संकल्पों से संकल्पित होकर
ख़ुश रहती हूँ तुमसे अनुबंधित होकर

तुमको अपने मन में अंकित करके मैं
और तुम्हारे मन में मैं अंकित होकर

गुमनामों में अपना नाम लिखाया है
प्यार तुम्हारा................................!

मरुथल से इक झील हुए हम तुम मिलकर
उजियारी कंदील हुए हम तुम मिलकर

एक लहर पानी में ज्यों घुल जाती है
ऐसे ही तब्दील हुए हम तुम मिलकर

हर शय ने हम पर अमृत बरसाया है!
प्यार तुम्हारा...............................!

-- सोनरूपा विशाल 

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